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कभी सोचा है इतना वजन लेकर भी एयरप्लेन आसानी से कैसे उड़ जाता है?, नहीं…. तो यहां जानिए

New Delhi: हमेशा ही हम लोगों को एयर प्लेन में बैठ कर सवारी करना बहुत ही पसंद आता है। हम सभी लोगों के मन में बचपन से ही आसमान में उड़ते हुए प्लेन देख कर चाहत होती थी कि हम लोग उसमें बैठ जाए। हम सभी की नजरे अक्सर आसमान में उड़ रहे प्लेन का पीछा करती रहती है। फिर इसके साथ ही दिमाग में ये भी ये सवाल आता था कि इतनी भारी फ्लाइट इतने सारे लोगों को लेकर बिना किसी सपोर्ट के आसमान में इतनी ज्यादा ऊची उड़ान कैसे भर लेती है। आज इतने बड़े होने के बाद भी सबके दिमाग में ये सवाल जरूर कही ना कही बंद होगा। अगर आज भी आपके पास इसका जवाब नहीं है, तो चिंता मत करिए हम आपके लिए इसका जवाब लेकर सामने आए है।

आसमान में बिना किसी सपोर्ट के एयरप्लेन कैसे उड़ता है इस बात को समझना जितना मुश्किल लगता है असल में उतना मुश्किल नहीं है। इसके लिए बस आपकों थोड़ी सी फिजिक्स की जानकारी होनी चाहिए, फिर क्या आप भी इसके एक्सपर्ट बन सकते हैं। इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपकों बस चार शब्द याद रखना बेहद जरूरी है। 1. Thrust, 2. Drag, 3. Weight और 4. Lift।

तो चलिए अब इस बात को समने के लिए स्टेप बाय स्टेप पूरा प्रोसेस समझते है। सबसे पहली चीज जो आती है, वो है Thrust….। बता दें कि, थ्रस्ट उस फोर्स को कहा जाता हैं, जो प्लेन को आगे बढ़ाने में हेल्प करती है। थ्रस्ट के फोर्स के लिए फ्लाइट के दोनों विंग पर एक- एक इंजन लगा हुआ होता है। विंग पर इस इंजन का काम ये होता है कि ये इंजन थ्रस्ट पैदा करता है। ये विंग में लगा हुआ ये इंजन सामने आ रही हवा को खींच कर कंप्रेस करता है जिससे हवा का दवाब बनता वो और पीछे छोड़ देता है। ये प्रोसेस ठीक उसी तरह है। जिस तरह से हम गुब्बारे में हवा भर उसे छोड़ देते थे, जैसे हवा निकलने पर गुब्बारा ऊपर की तरफ भागने लगता है, ठीक उसी तरह से कंप्रेस से हवा को छोड़ने पर थ्रस्ट पैदा हो जाता है।

चलिए अब इंजन कैसे काम करता है समझते हैं :-

बता दें कि फ्लाइट के विंग पर लगे हुए इंजन में 5 सबसे खास पार्ट्स होते हैं।

1. फैन : यदि आप विंग पर लगे हुए इंजन को सामने से देखते है, तो आपकों उसमें सबसे पहले नजर आने वाली चीज एक फैन है, जो सामने ही दिखाई देगी। ये कोई मामूली फैन नहीं है, इस फैन को टाइटेनियम से बनाया जाता है, जिसकी वजह ये फैन बहुत पावरफुल होता है। इंजन का इस फैन से लाखों किलो की हवा अंदर ओर खींचकर इंजन में भेजा जा सकता है।

बता दें कि इस फैन के जरिए हवा दो रास्तों से होकर इंजन के अंदर जाती है। पहले रास्ता वो होता है, जिससे हवा सीधे इंजन में जा सकती है, वहीं दूसरा रास्ता उसके बगल से होकर निकल जाता है। इंजन के बगल से गुजरने वाली हवा को आम भाषा में Bypass कहा जाता हैं। इससे भी थ्रस्ट फोर्स पैदा होता है, इसके अलावा ये बाइपास एयर इंजन को ठंडा रखने में भी काफी मददगार साबित होता है।

2. कंप्रेसन: वहीं इंजन में कंप्रेसर का काम भी हवा से जुड़ा हुआ होता है, दरअसल कंप्रेसर हवा को दबा कर उसकी डेंसिटी बढ़ाना का काम करता है। जब कंप्रेसर अपना काम करता है तो उसके चलने पर उसके ब्लेड छोटे होते चले जाते हैं, जिससे हवा की कंप्रेस डेंसिटी बढ़ती हैं।

3. कम्बूस्टर : बता दें कि कंप्रेसर से हो कर हवा कंबस्टर के पास जाती है, कंबस्टर में जा कर हवा तेल के साथ मिला जाती है, और फिर उसे जलाया जाता है। भले ही इस प्रोसेस का काम सुनने में सिंपल लग रहा हो, लेकिन असलियत इससे पूरी तरह से अलग है ये प्रोसेस बहुत ही कॉम्प्लीकेटेड है।

4. टरबाइन : फैन, कंप्रेस और कम्बूस्टर के बाद से हवा को अब टरबाइन पार्ट से गुजरना होता है, टरबाइन के पास आने से हवा की रफ्तार तेज हो जाती है। बता दें कि टरबाइन से ही इंजन का फैन और कंप्रेसर भी जुड़ा हुआ होता हैं, जो तेजी के साथ हवा को अपने पास खींचने लगते हैं।

5. मिक्सर/ नॉजल: इस प्रोसेस के आखिरी स्टेप में कंप्रेस्ड हवा को तेजी से बाहर निकाल दिया जाता है।

इस प्रोसेस के दौरान आपने एक बात समझी, जैसे ही हवा नोजल से बाहर निकलती है, यहां न्यूटन का तीसरा लॉ लागू हो जाता है। जो ये कहता है कि ‘एवरी एक्शन हैज इट्स इक्वल एंड ओपोजिट रिएक्शन’।

नोजल के जरिए से बाहर निकलने वाली हवा से फ्लाइट को आगे की तरफ बढ़ने के लिए धक्का मिलता है, बस इसी फोर्स को “थ्रस्ट” नाम के नाम से जाना जाता हैं।

 

थ्रस्ट के बाद से आता है Drag या घर्षण बल। जिसको हम एक उदाहरण के साथ समझने की कोशिश करेंगे।

उदाहरण, ये है कि जब आप कार में हाई स्पीड के साथ रोड पर चल रहे होते हैं, और उसी बीच जब आप खिड़की से अपना हाथ बाहर निकालते हैं, तो आपको अपने हाथों पर हवा का एक दवाब महसूस होता है। हवा की तरफ से लगाए जाने वाले इस फोर्स से आपका हाथ अपने आप को पीछे की तरफ धकेलने लगता है। ऐसा इस लिए होता क्योंकि कार का थ्रस्ट ज्यादा है, वहीं हाथ भी काफी मजबूत होता है, इसी वजह से हाथ कार के साथ ही आगे बढ़ता चला जाता है, वैसे ये थ्योरी कार की स्पीड पर निर्भर करता है।

ठीक इसी लॉ के मुताबिक, धरती के ऑर्बिट में जब किसी तरह का एस्ट्रोइड आ जाता है, तो उसमे आग पकड़ लेता है, क्योंकि उसकी स्पीड ज्यादा होने की वजह से उसका घर्षण बल भी ज्यादा होता है।

फ्लाइट के इसी फोर्स को कम करने के लिए प्लैन में एरो डायनामिक्स बनाया जाता है, ताकि फ्लाइट में उड़ान भरने के बाद उसके टायर्स को छिपा दिया जा सके, और उसके ड्रैग फोर्स कम किया जा सके, इसके साथ ही थ्रस्ट ज्यादा करना होता है।

अब आते हैं Weight और Lift के पॉइंट पर, इस पॉइंट में हम ये समझेंगे, कि यह दो फोर्स कहां से आते हैं।

हम सभी जानते हैं कि धरती के ऊपर पाई जाने वाली हर एक चीज का अपना एक Weight होता है, जो अपने ग्रेविटेशनल फोर्स के कारण से धरती पर लगा हुआ होता है। ग्रेविटेशनल फोर्स का काम ही यही होता है कि वो किसी भी फोर्स को नीचे घरती तरफ खींचें। उड़ती फ्लाइट के साथ भी ऐसा ही होता है। ग्रेविटेशनल फोर्स हवा की फ्लाइट को नीचे खींचने का काम करती है, लेकिन फ्लाइट के विंग ऐसे बने होते हैं कि उन पर लिफ्ट फोर्स लगाया जा सके, और फ्लाइट आराम से आसमान में उड़ सके।

बता दें कि फ्लाइट के विंद को कुछ इस तरह तिरछा करके बनाया ही जाता है कि जब उड़ान के दौरान उस पर थ्रस्ट फॉर्स लगे तो, प्लेन को आगे की तरफ धक्का मिले, जिससे फ्लाइट की विंग के ऊपर की हवा तेज स्पीड से गुजरे और विंग के नीचे की हवा आराम से धीरे धीरे निकलती रहे। जब फ्लाइट विंग के ऊपर से हवा तेज स्पीड में निकलने लगती है, तो उसका दबाव नीचे की मौजूद हवा के दबाव से कम हो जाता है। बस इसी जगह पर लिफ्ट फॉर्स काम सामने आता है, जो प्लेन को ऊपर की ओर धक्का देता है। क्योंकि फ्लाइट का लिफ्ट फोर्स Weight से ज्यादा हो जाता है, और इसी वजह से प्लेन हवा में उड़ने लगता है।